Sarfaraz Khan: मोटा समझ कर हल्के में मत लेना भाई!
सरफ़राज़ ख़ान। कहाँ से क्रिकेटर लगता है। मोटा ताज़ा। थोड़ा दौड़ेगा और थक जाएगा। मुंबई में रन बनाता है तो क्या इंडिया के लायक़ हो गया। आईपीएल में खिला के देखा था ना। क्या उखाड़ लिया। सरफ़राज़ ख़ान के जीतने चाहने वाले थे, उससे ज़्यादा लोग उनकी हंसी उड़ाने वाले थे। कहते थे कि मुंबई लॉबी इसे इंडिया खिलाने के लिए एजेंडा बनाये बैठी है। इससे ना ज़्यादा कितने अच्छे खिलाड़ी इंडिया में हैं। बेंगलुरु टेस्ट के जब दूसरे दिन सरफ़राज़ जीरो पर आउट हुए तो लोगों ने कहना शुरू किया: खुल गई ना पोल। अब हुआँ यूँ कि इंडिया तो 46 रनों पर निपट गई थी। और न्यूज़ीलैंड ने बना लिये थे 402 रन। यान 356 रनों की बढ़त। फिर भी सरफ़राज़ को दूसरी पारी में चौथे नंबर पर ही खेलने भेजा गया। उस समय इंडिया के ओपनर्स आउट हो चुके थे। स्कोर था 95 रन। विराट कोहली भी क्रीज़ पर थे। कोहली और सरफ़राज़ दोनों ने पहली पारी में जीरो ही बनाया था। कोहली की शुरुआत हिली हुई थी। सरफ़राज़ अब अपनी पारी कैसे शुरू करें। इस बार भी जीरो पर आउट हो गये तो हंसी तो उड़ेगी ही बल्कि ऑस्ट्रेलिया जाने का पत्ता भी शायद कट जाये। लेफ्ट-आर्म स्पिनर अजाज पटेल गेंदबाज़ी कर रहे थे। गेंद लेग स्टंप पर थी। गेंद थी तो स्वीप करने के लायक़। पर अगर स्वीप किया और टॉप एज होकर कैच उछाल गया तो। ना जाने कितने सवाल सरफ़राज़ के दिमाग़ में घूम रहे थे। पर सरफ़राज़ ने सोच लिया था कि खेलूँगा तो अपना खेल ही खेलूँगा। रख के स्वीप दिया। और चौका। अगली गेंद भी वैसी ही। फिर चौका। गेंद को कट करने की तो सरफ़राज़ ने बौछार कर दी। एक वाइड थर्ड मन पर छक्का भी लगाया। अजाज पटेल को तो तड़े हुए थे। दो गेंदों पर स्लग स्वीप करके लगातार छक्के मारे। जब चौथे दिन का खेल शुरू हुआ तब सरफ़राज़ 70 रनों पर बैटिंग कर रहे थे। ताबड़तोड़ उन्होंने अपने करियर का पहला टेस्ट शतक पहले 45 मिनटों में पूरा किया। शतक एक शानदार कवर ड्राइव से आया। सरफ़राज़ के बारे में जो लोग कहते हैं वो उनको बाहरी रूप से देख कर कहते हैं। वाक़ई सरफ़राज़ छोटे और मोटे हैं। पर सरफ़राज़ ने मुंबई के मैदानों की इतनी धूल छानी है कि पक कर सोना हो गये हैं। रेड-बॉल क्रिकेट में ना जाने कितने दिन धूप में निकले हैं। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 15 शतक हैं। ये कोई मामूली बात नहीं है। क़रीब क़रीब 70 का औसत है। फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेलते हुए 10 साल हो गये हैं। उनको अपना खेल मालूम है। और आज हर कोई यही कह रहा है कि जो दिखता है वही हमेशा सही नहीं होता। कभी कभी दिखता कुछ और है और निकलता कुछ और है। सरफ़राज़ देखने में क्रिकेटर नहीं लगते। पर हैं ख़ालिस टेस्ट क्रिकेटर। उनकी बैटिंग फुल ऑन मनोरंजन है। टीम इंडिया को एक खरा सोना मिल गया है।